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जब उपमेय में उपमान का अभेद आरोप किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। आचार्य दण्डी रूपक को इस प्रकार परिभाषित किया है- उपमैव तिरोभूतभेदारूपकमुच्यते अर्थात् जब उपमेय और उपमान में भेद तिरोहित हो जाए, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है। भेद 1- सांगरूपक 2- निरंगरूपक 3- परम्परित रूपक 1- सांगरूपक- जब उपमेय में उपमान का अंगों सहित आरोप किया जाता है तो वहाँ सांगरूपक अलंकार होता है। उदाहरण- उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग मंच- उदयगिरि रघुवर- बाल पतंग संत- सरोज कमल- भृंग के साथ अभेद आरोप किया गया है। इसलिए यहाँ सांगरूपक अलंकार है क्योंकि उपमेय, उपमान आदि सभी के साथ अभेद आरोप सिद्ध होता है। 2- निरंगरूपक- जब उपमेय में केवल उपमान का ही आरोप हो, अन्य का नहीं, तो वहाँ निरंगरूपक अलंकार होता है। उदाहरण आतप तापित जीवन सुख की शांतिमयी छाया के देश हे अनंत की गणना देते तुम कितना मधुमय संदेश 3- परम्परित रूपक- जहाँ दो रूपक होने पर एक रूपक दूसरे रूपक का कारण बनता हो, वहाँ पारम्परिक रूपक होता है। उदाहरण- उदयो ब्रजनभ आइ, हरि मुख मधुर मयंक इसमें पहले ब्रज को नभ तथा उसके उपरांत हरिमुख को मयंक बताया गया है। इसलिए यहाँ परम्परिक रूपक है। रूपक अलंकार के 10 उदाहरण 1- उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग 2- चरण कमल मृदु मंजु तुम्हारे 3- उदयो ब्रजनभ आइ, हरि मुख मधुर मयंक 4- जय जय जय गिरिराज किसोरी जय महेश मुख चंद किसोरी। 5- पतवारी माला पकरि और न कुछु उपाय । तरि संसार-पयोधि कौं हरि नावैं करि नाउ ।। 6- अरुन सरोरूह कर चरन, दृग खंजन मुख चंद समै आई सुन्दरि सरद, काहि न करत अनंद ।। 7- बढ़त-बढ़त सम्पत्ति सलिल, मन सरोज बढ़ि जाइ। घटत-घटत सु न फिर घटै, वरू सूल कुम्हिलाई ।। 8- बीती बीभावरी जाग री अम्बर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी। 9- कौन तुम संसृति जलनिधि तीर तरंगों से फेंकी मणि एक कर रहे निर्जन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक 10- मारिये आसा साँपनि, जिन डसिया संसार । ताकी ओषध तोष है, ये गुरु मंत्र विचार ।।
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