हिंदी साहित्य काव्यांश तथा गद्यांशओं का सोने का पिटारा है । जैसे आभूषण के बिना स्त्री अधूरी होती है ठीक उसी प्रकार हिंदी साहित्य के बिना हिंदी भाषा अधूरी है। हिंदी साहित्य को सुनहरा बनाने वाले हैं हिंदी साहित्य के लेखक। हिंदी साहित्य के लेखक ने गद्यांशओ को इतना रुचिकर और आकर्षक लिख दिया है की हिंदी साहित्य को पढ़ना सभी को अच्छा लगने लगा है। हिंदी साहित्य आज से नहीं चला रहा है कहा जाता है कि आदिमानव के द्वारा पहला साहित्य प्राप्त हुआ था। ऐसा लगता है कि हिंदी साहित्य के लेखक द्वारा शब्दों को हिंदी साहित्य में मानों सुनहरे अक्षरों से लिखा हो,तो इसी के साथ आइए जानते हैं हिंदी साहित्य के लेखकों के बारे में।
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हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट् हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। विदेशी मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:-
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- भक्ति काल (1375-1700)
- रीति काल (1700-1900)
- आधुनिक काल (1850 ईस्वी के बाद)
- भक्ति काल (1375 – 1500)
भक्ति काल (1375-1700)
हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1500 वि0 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत काल है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं –
- निर्गुण भक्तिधारा
- सगुण भक्तिधारा
निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, संत काव्य (जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में जाना जाता है, इस शाखा के प्रमुख कवि कबीर, नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास, सुन्दरदास, धर्मदास आदि हैं।
निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा सूफी काव्य का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मोहम्मद आदि।
भक्तिकाल की दूसरी धारा को सगुण भक्ति धारा के रूप में जाना जाता है। सगुण भक्तिधारा दो शाखाओं में बांटी गई हैं- रामाश्रयी शाखा, तथा कृष्णाश्रयी शाखा। रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- तुलसीदास, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, हृदयराम, प्राणचंद चौहान, महाराज विश्वनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह।
कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, छीतस्वामी, गोविन्द स्वामी, चतुर्भुज दास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, रहीम आदि। चार प्रमुख कवि जो अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कवि हैं (क्रमशः)
- कबीरदास (1399-1518)
- मलिक मोहम्मद जायसी (1477-1542)
- सूरदास (1478-1580)
- तुलसीदास (1532-1602)
रीति काल (1700-1900)
हिंदी साहित्य का रीति काल संवत 1700 से 1900 तक माना जाता है यानी 1643 ई० से 1843 ई० तक। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बंधी-बंधाई परिपाटी। इस काल को रीतिकाल कहा गया क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद बद्धता आदि के बंधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि घनानंद, बोधा, ठाकुर, गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे।
केशव (1546-1618), बिहारी (1603-1664), भूषण (1613-1705), मतिराम, घनानन्द , सेनापति आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे।
आधुनिक काल (1850 ईस्वी के पश्चात)
आधुनिक काल हिंदी साहित्य पिछली दो सदियों में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा है। जिसमें गद्य तथा पद्य में अलग अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और यथार्थवादी युग इन चार नामों से जाना गया, वहीं गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, रामचंद शुक्ल व प्रेमचंद युग तथा अद्यतन युग का नाम दिया गया।
कबीर दास
हिन्दी साहित्य की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि कबीर भक्तिकाल के महान समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत, धार्मिक आडम्बर, ऊँच-नीच एवं बहुदेववाद का कड़ा विरोध करते हुए ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ के मूल्यों को स्थापित किया कबीर की प्रतिभा में अबाध गति व तेज था । उन्हें पहले समाज-सुधारक बाद में कवि कहा जाता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का डिक्टेटर कहा है। कवि ने अपनी सपाटबयानी एवं तटस्थता से समाज-सुधार के लिए जो उपदेश दिए उनका संकलन उनके शिष्य धर्मदास ने किया। कबीर की रचनाओं के संकलन को बीजक कहा जाता है। बीजक के तीन भाग हैं- साखी, सबद व रमैनी। संत काव्य परम्परा में उनका काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव से फक्कड़, आदत से अक्खड़, भक्त के सामने निरीह, भेषधारी के सामने प्रचंड, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्त, जन्म से अस्पृश्य, कर्म से वंदनीय-ऐसे थे कबीर।”-हजारी प्रसाद द्विवेदी।
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में काशी में हुआ। ऐसी मान्यता है कि उन्हें एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया और लोकलाज से बचने के लिए लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया। नीरू और नीमा नामक मुसलिम दंपति ने उनका पालन-पोषण किया वे अनपढ़ थे। रामानंद नाम के गुरु से उन्होंने निर्गुण भक्ति की दीक्षा ली। साधु-संगति और स्वानुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। कमाल और कमाली नाम की उनकी दो संतानें भी थीं। वे 120 वर्ष की दीर्घ आयु में हरिशरण को उपलब्ध हुए।
रचनाएँकबीर की सभी रचनाएँ कबीर-ग्रंथावली में संकलित हैं। कबीर ने स्वयं कुछ नहीं लिखा। न लिखना उनका उद्देश्य था। उनकी वाणी से जो अमृतमय संगीत निकला, उसे उनके शिष्यों ने लिपिबद्ध कर दिया। बीजक, रमैनी और सबद नाम से उनके तीन काव्य-संग्रह हैं। सिक्ख धर्म के गुरु-ग्रंथ में भी उनकी वाणी को स्थान मिला है।
काव्यगत विशेषताएँकबीर आत्मविश्वास से भरपूर थे। उन्होंने जो भी लिखा ‘ऑखिन देखी’ लिखा, ‘कागद की लेखी’ नहीं। उनका समाज धार्मिक रूड़ियों और अधविश्वासों से ग्रस्त था। अत: उन्होंने समाज सुधार की आवात उठाई। कबीर मूलत: संत थे। निराकार ईश्वर में उनकी आस्था थी। उनका विश्वास था कि प्रभु की प्राप्ति ज्ञान और विशुद्ध पेम द्वारा हो सकती है। नाम-स्मरण और गुरु-शरण दोनों ईश-आराधना के लिए अनिवार्य हैं उन्होंने गुरु को ईश्वा में भो अधिक ऊँचा स्थान दिया नारी और माया-दोनों का उन्होंने प्रखर विरोध किया, क्योंकि ये दोनों साधक को साधक से विमुख करते हैं प्रभु-मिलन के लिए उन्होंने स्वयं को ‘राम की बहुरिया’ माना और ईश्वर को ‘राम’। उनके कार्य में आत्मा की वियोगावस्था एवं मिलनावस्था के मार्मिक चित्र उपलब्ध होते हैं ।
कबीर की चेतना प्रचंड विद्रोही थी। किसी पाखंडी, धूर्त या भेषधारी को देखते ही वे प्रचंड हो उठते थे| उन्होने मूर्तिपूजा, संप्रदायवाद. तिलक, माला आदि का डटकर विरोध किया। एक उदाहरण देखिए-
माला पहिरे, टोपी पहिरे, छाप-तिलक अनुमाना। साखी सबदै गावत भूले, आतम खबर न जाना।।
भाषा शैलीकबीर की भाषा-शैली के बारे में आचार्य द्विवेदी लिखते हैं-‘कबीर वाणी के डिक्टेटर थे। उनका भाषा पर जबरदस्त अधिकार था। सच पूछा जाए तो हिंदी में ऐसा जबरदस्त व्यंग्य-लेखक पैदा ही नहीं हुआ।’ कबीर की भाषा अनगढ़ होते हुए भी अपने हृदयस्थ भावों को व्यक्त करने में पूर्णतया समर्थ है। उनकी भाषा में राजस्थानी, पंजाबी, अरबी-फारसी का सम्मिश्रण उपलब्ध होता है। इसलिए उसे शुक्ल जी ने सधुक्कड़ी कहा है। निश्चय ही कबीर हिंदी के अमर कवि है।
प्रेमचंद्र
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में सन् 1880 में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इसलिए घरजिम्मेदारी असमय ही उनके कंधों पर आ पड़ी। वे दसवीं पास करके प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बन गए। नौकरी में रहकर ही उन्होंने बी.ए. पास किया। इसके बाद वे शिक्षा विभाग में सबडिप्टी-इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स के रूप में नियुक्त हो गए। सन् 1920 में वे गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने साहित्य-लेखन द्वारा देशसेवा करने का संकल्प किया। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। पहले वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। बाद में हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। उन्होंने अपना छापाखाना खोला तथा ‘हंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। सन् 1936 में उनका देहांत हो गया।
रचनाएँमुंशी प्रेमचंद ने 350 कहानियाँ और 11 उपन्यास लिखे। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संकलित हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं-सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि और गोदान। ‘क्बला’ और ‘प्रेम की वेदी’ नामक उनके दो नाटक भी हैं। उनके द्वारा लिखित निबंध ‘कुछ विचार’ और ‘विविध प्रसंग’ नामक संकलनों में संकलित हैं।
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साहित्यिक विशेषताएँमुंशी प्रेमचंद के साहित्य का सबसे प्रमुख विषय है-राष्ट्रीय जागरण समाज-सुधार। देशभक्ति के प्रबल स्वर के कारण उनके कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। मुंशी प्रेमचंद ने दीन-हीन किसानों, ग्रामीणों और शोषितों की दलित अवस्था का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कफ़न, पूस की रात, गोदान आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध विद्रोह की आवाज़ उठाती हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अन्य बुराइयों-दहेज, अनमेल विवाह, नशाखोरी, शोषण, बहु-विवाह, छुआछूत, ऊँच-नीच आदि पर भी प्रभावशाली साहित्य लिखा।
भाषा-शैलीमुंशी प्रेमचंद अपनी सरल, मुहावरेदार भाषा के लिए विख्यात है। उन्होंने लोकभाषा को साहित्यिक भाषा बनाया। उनकी भाषा आम जनता के बहुत निकट है। वे अपने पात्र, वातावरण और मनोदशा के अनुसार शब्दों का चुनाव में उसका करते हैं। वास्तव में एक व्यक्ति जिस वातावरण में अपने पद-स्थान के अनुसार जिस परिस्थिति में जो भाषा बोलता है, उसी को व्याकरण के नियमों में ढालकर उन्होंने प्रस्तुत कर दिया है। वे मानव-मन में उठ रहे मनोभावों को प्रकट करने में बहुत कुशल हैं।
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सीताराम सेकसरिया
सीताराम सेकसरिया प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी तथा व्यापारी रहे हैं। उनका जन्म सन् 1892 में राजस्थान के नवलगढ़ नामक स्थान पर हुआ। उनका अधिकांश जीवन व्यापार के सिलसिले में कोलकाता में बीता। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
सीताराम सेकसरिया ने बार सत्याग्रह में भाग लिया तथा जेल-यात्रा की। वे रवींद्रनाथ ठाकुर तथा सुभाष चंद्र बोस के भी नज़दीक रहे। वे कुछ वर्षों तक आजाद हिंद फौज के मंत्री रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा नारी शिक्षण संबंधी अनेक संस्थाओं की स्थापना की तथा उनका संचालन किया। सन् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया। सन् 1982 में उनका देहांत हो गया।
रचनाएँसेकसरिया जी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग, नयी याद, एक कार्यकर्ता की डायरी।
साहित्यिक विशेषताएँसीताराम सेकसरिया देश, समाज, संस्कृति, साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन से गहरे जुड़े हुए थे। उनके साहित्य में स्वतंत्रता आंदोलन और नारी-जागृति की झलक स्पष्ट देखी जा सकती है। ‘डायरी का एक पन्ना’ में परतंत्र भारत की सजीव झाँकी प्रस्तुत की गई है। इसमें दिखाया गया है कि आजादी के दीवानों में भारत की स्वतंत्रता के लिए कैसी दीवानगी थी।
भाषा-शैलीसेकसरिया की भाषा दृश्य को आँखों के सामने सजीव करने की क्षमता रखती है। वे बोलचाल की सहज भाषा का प्रयोग करते हैं।
लीलाधर मंडलोई
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
लीलाधर मंडलोई का जन्म सन् 1954 में जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल तथा रायपुर में हुई। उन्हें सन् 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, की ओर से प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए आमंत्रित किया गया। आजकल वे प्रसार भारती, दूरदर्शन के हानिदेशक का कार्यभार संभाल रहे हैं।
रचनाएँ-मंडलोई मूलतः कवि हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा, काला पानी।
साहित्यिक विशेषताएँसहृदय कवि होने के कारण लीलाधर मंडलोई के गद्य में भी सरसता और कोमलता के दर्शन होते हैं। उनके साहित्य में छत्तीसगढ़ अंचल की सहज मिठास व्यक्त हुई है। उन्होंने सामान्य जन-जीवन का सजीव चित्रण किया है। उन्होंने अंदमान निकोबार द्वीप में रहने वाली जनजातियों पर भी लोकगाथाएँ, लोकगीत, यात्रा-वृत्तांत, यरी, रिपोर्ताज, आलोचना आदि लिखे हैं। ‘तताँरा-वामीरो कथा ‘ में जनजातीय समाज की परंपराओं के बीच पलते-बिखरते प्रेम की कहानी व्यक्त हुई है।
भाषा-शैलीलीलाधर मंडलोई की भाषा भावनापूर्ण है। वे विषय के अनुरूप शब्द-प्रयोग करने में कुशल हैं। निकोबार जनजाति के परिवेश को साकार करने के लिए उन्होंने तदनुकूल शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रहलाद अग्रवाल
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
प्रहलाद अग्रवाल का जन्म सन् 1947 में मध्य प्रदेश के जबलपुर नामक नगर में हुआ। उन्होंने हिंदी साहित्य से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इन दिनों वे सतना के शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे हैं।
रचनाएँप्रहलाद अग्रवाल की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- सातवाँ दशक, तानाशाह, मैं खुशबू, सुपर स्टार, राज कपूर : आधी हकीकत आधा फ़साना, कवि शैलेंद्र : जिंदगी की जीत में यकीन, प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फ़िल्मकला, ओ रे माँझी : बिमल राय का सिनेमा, महाबाज़ार के महानायक : इक्कीसवीं सदी का सिनेमा।
साहित्यिक विशेषताएँ-प्रहलाद अग्रवाल के लेखन का क्षेत्र है-फिल्मी जगत। वे किशोर अवस्था से ही फिल्मी दुनिया के हर पक्ष पर लेखन करते आ रहे हैं। उन्होंने अपने साहित्य में फिल्मकारों, अभिनेताओं, निर्माताओं, कलाकारों, लेखकों, कवियों पर सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किए हैं।
अंतोन चेखव
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
अंतोन चेखव प्रसिद्ध प्रगतिशील लेखक हैं। उनकी कहानियाँ विश्व-भर में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1860 में दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में हुआ। जब वे विद्यार्थी थे, तभी से उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थी।
रचनाएँ-चेखव की प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-गिरगिट, क्लर्क की मौत, वान्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा, इओनिज, रोमांस, दुलहन। उनके द्वारा रचित नाटक हैं-वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा।
साहित्यिक विशेषताएँ-चेखव के समय रूस पर शासकों और पूँजीपतियों का कड़ा शासन था। पूँजीपतियों द्वारा गरीबों का जमकर शोषण किया जाता था। शासकों द्वारा लोगों का दमन किया जाता था जो भी लेखक उनकी स्थापित व्यवस्था के विरुद्ध बोलता था, उसके लिए जीना कठिन हो जाता था। ऐसे समय में चेखव ने जीवन के यथार्थ का उद्घाटन किया। उन्होंने जन-विरोधी और शासन-तंत्र को पोषित करने वाली व्यवस्था का मजाक उड़ाया। ‘गिरगिट’ में ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी की खिल्ली उड़ाई गई है।
निदा फ़ाज़ली
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
निदा फ़ाज़ली उर्दू के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म 12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। उनका बचपन ग्वालियर में बीता। वे युवावस्था में ही शायर के रूप में विख्यात हो गए। वे साठोत्तरी पीढ़ी के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। आजकल वे फ़िल्म उद्योग के लिए लिख रहे हैं।
रचनाएँलफ़्जों का पुल (कविता) खोया हुआ-सा कुछ (शायरी) (साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा पुरस्कृत रचना)दीवारों के बीच, दीवारों के पार (आत्मकथा)
साहित्यिक विशेषताएँनिदा फ़ाज़ली मूल रूप से शायर हैं। उनकी हिंदी कविताएँ भी आम बोलचाल की हिंदी में तमाशा मेरे आगे (संस्मरण) हैं। वे कविताएँ पाठकों के दिल को छूने की क्षमता रखती हैं। निदा फ़ाज़ली का गद्य भी बहुत सरल, सरस और सुगम है। वे शेर-ओ-शायरी से भरपूर बहुत सरल और मधुर गद्य लिखते हैं। प्रायः वे अपने किसी शेर की एक पंक्ति को उठा कर उसका भाव-विस्तार करते चले जाते हैं। ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ इसी प्रकार का संस्मरणात्मक निबंध है।
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रविंद्र केलेकर
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
रवींद्र केलेकर गाँधीवादी चिंतक हैं। वे कोंकणी और मराठी के अलावा हिंदी साहित्य के लेखक विख्यात लेखक और पत्रकार हैं। उनका जन्म 7 मार्च, 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ। जब वे छात्र थे, तभी से गोवा मुक्ति आंदोलन में सम्मिलित हो गए थे। उन्होंने गाँधीवादी चिंतन के अनुसार साहित्य-सृजन किया।
रचनाएँरवींद्र केलेकर मराठी, कोंकणी तथा हिंदी के लेखक हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं कोंकणी-ठजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे मराठी-कोंकणीचे राजकरण, जापान जसा दिसला हिंदी-पतझर में टूटी पत्तियाँ।
साहित्यिक विशेषताएँरवींद्र केलेकर पर गाँधीवादी चिंतन शैली का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उन्होंने न केवल गाँधीवादी विचारों को महत्त्व दिया है, अपितु उन्हीं की शैली को अपनाया है। उन्होंने गाँधीवादी व्यावहारिक आदर्श की स्थापना की है। लोकतंत्र की सफलता के लिए जन-जागरण की निरंतर आवश्यकता को रेखांकित किया है। ‘झेन की देन’ पाठ के द्वारा उन्होंने अत्यधिक तृष्णा से बचने का संदेश दिया है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1886 में हुआ। आचार्य शुक्ल हिंदी साहित्य के लेखक में सर्वोत्कृष्ट गद्यकार हैं। उनका ‘हिंदी साहित्य के लेखक का इतिहास’ अत्यंत प्रामाणिक ग्रंथ है।
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हिन्दी लेखक का जीवन परिचय
‘हिंदी शब्द सागर’, ‘भमर गीत सार’, ‘जायसी ग्रंथावली’, ‘तुलसी साहित्य’, आदि विविध ग्रंथों का उन्होंने संपादन किया हिंदी की सैद्धांतिक समीक्षा के मानदण्डों की स्थापना के संदर्भ में शुक्ल जी का अप्रतिम योगदान रहा है। वे मूलतः आलोचक और विचारक थे। 1904 ई. से उनके निबंध ‘सरस्वती’ और ‘आनन्द कादम्बिनी’ आदि प्रमुख पत्रिकाओं में छपते रहे । प्रौढ़ निबंधों का संग्रह चिंतामणि भाग एक व दो प्रकाशित हुआ। चिंतामणि भाग 1 पर उन्हें ‘मंगलाप्रसा्द पारितोषिक’ प्राप्त हुआ।
साहित्यिक विशेषताएँ-‘उत्साह’, ‘करुणा’, ‘क्रोध’, ‘श्रद्धा-भक्ति’, ‘लज्जा और ग्लानि’, ‘लोभ और प्रीति’, ‘घृणा’, ‘भय’ आदि मनोविकारों संबंधी निबंधों में उनके मन और बुद्धि का अद्भुत सामंजस्य दिखाई देता है। इन निबंधों के माध्यम से शुक्ल जी ने लोक की विविध परिस्थितियों के आचार -व्यवहार तथा अनेकानेक संघर्षों के बीच पड़े हुए मन की व्याख्या की है। सुख व दुःख की मूल प्रवृत्तियाँ ही जीवन को गतिशील बनाती हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी
जयशंकर प्रसाद
जीवन परिचयजन्म – सन् 1889 ई.मृत्यु – सन् 1037 ई
बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ही पिता के निधन से पारिवारिक उत्तरदायित्व का बोझ इनके कधों पर आ गया। मात्र आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पाली, हिन्दी, उर्दू व अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का विशद ज्ञान प्राप्त किया।
रचनाएँप्रसाद की रचनाएँ भारत के गौरवमय इतिहास व संस्कृति से अनुप्राणित है कामायनी उनकासर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य है जिसमें आनन्दवाद की नई संकल्पना समरसता का संदेश निहित है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं -झरना, ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी. इंद्रजाल
(कहानी संग्रह) तथा ककाल तितली इरावती (उपन्यास)।
साहित्यिक विशेषताएँ-प्रेम समर्पण कर्तव्य एवं बलिदान की भावना से ओतप्रोत उनकी कहानियों पाठक को अभिभूत कर देती है।
रामचन्द्र शुक्ल
रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती ज़िले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। उन्होंने हिन्दी, उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी के साहित्य का गहन अनुशीलन प्रारम्भ कर दिया था, जिसका उपयोग वे आगे चल कर अपने लेखन में जमकर कर सके। सन् 1909 से 1910 ई. के लगभग वे ‘हिन्दी शब्द सागर’ के सम्पादन में वैतनिक सहायक के रूप में काशी आ गये, यहीं पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा के विभिन्न कार्यों को करते हुए उनकी प्रतिभा चमकी। ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन भी उन्होंने कुछ दिनों तक किया था। कोश का कार्य समाप्त हो जाने के बाद शुक्ल जी की नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी के अध्यापक के रूप में हो गई। वहाँ से एक महीने के लिए वे अलवर राज्य में भी नौकरी के लिये गए, पर रुचि का काम न होने से पुन: विश्वविद्यालय लौट आए।
रामचन्द्र शुक्ल की बेस्ट बुक्स
हिन्दी साहित्य के लेखक रामचन्द्र शुक्ल की बेस्ट बुक्स के नाम नीचे दिए गए हैं-
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचनाराजकमल प्रकाशन
- सिद्धान्त और अध्ययन : भारतीय तथा पाश्चात्य समीक्षा-सिद्धान्तों का प्रसादपूर्ण शैली में विवेचनआत्माराम एण्ड संस
- आचार्य रामचन्द्र शुक्लविश्वविद्यालय प्रकाशन
- आचार्य रामचंद्र शुक्लसचिन प्रकाशन
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : एक दृष्टिहिन्दुस्तानी एकेडेमी
- विश्व-आलोचना को आचार्य शुक्ल की देननेशनल पब्लिशिंग हाउस
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना कोशविश्वविद्यालय प्रकाशन
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और भारतीय समीक्षाकेद्रीय हिंदी संस्थान
हिंदी साहित्यकार के नाम और उनकी रचनाएं
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Danh mục: शिक्षा