अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक थे। महाराज पांडु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र और सबसे अच्छे धर्नुधारी थे। वे द्रोणाचार्य के श्रेष्ठ शिष्य थे।
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सक्षिप्त प्रसंग
अज्ञातवास के समय जब पांडव विराट नगर में अपनी पहचान छिपाकर रह रहे थे, तब दुर्योधन द्वारा विराट नगर पर आक्रमण किया गया। ऐसे में बृहन्नला के वेष में अर्जुन राजकुमार उत्तर के साथ कौरव सेना का सामना करने के लिए गए। पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र एक शमी वृक्ष पर छिपाकर रखे थे। युद्ध से पूर्व अर्जुन अस्त्र-शस्त्र लेने के लिए वृक्ष की ओर गए। कौरवों ने बृहन्नला वेषधारी अर्जुन को रथ पर चढ़कर शमी वृक्ष की ओर जाते हुए देखा तो वे अर्जुन के आने की आशंका से मन ही मन बहुत डरे। तब द्रोणाचार्य ने पितामह भीष्म से कहा- “गंगापुत्र यह जो स्त्रीवेष में दिखाई दे रहा है, वह अर्जुन सा जान पड़ता है।”
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अर्जुन द्वारा नामों का वर्णन
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इधर अर्जुन रथ को शमी वृक्ष के पास ले गए और उत्तर से बोले- “राजकुमार मेरी आज्ञा मानकर तुम जल्दी ही वृक्ष पर से धनुष उतारो।” उत्तर को वहाँ पाँच धनुष दिखाई दिए। उत्तर पांडवों के उन धनुषों को लेकर नीचे उतरे और अर्जुन के आगे रख दिए। जब कपड़े में लपेटे हुए उन धनुषों को खोला तो सब ओर से दिव्य कांति निकली। तब अर्जुन ने कहा- “राजकुमार ये अर्जुन का गांडीव धनुष है।” राजकुमार उत्तर ने नपुसंक का वेष धरे हुए अर्जुन (बृहन्नला) से कहा- “यदि ये धनुष पांडवों के हैं तो पांडव कहाँ हैं?” तब अर्जुन ने कहा- “मैं अर्जुन हूँ। उत्तर ने पूछा कि- मैंने अर्जुन के कई नाम सुने हैं। यदि तुम मुझे उन नामों का व उन नामों के कारण बता दो तो मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास हो सकता है।” राजकुमार उत्तर के पूछने पर अर्जुन ने अपने निम्न नाम बताये-
- धनञ्जय – राजसूय यज्ञ के समय बहुत से राजाओं को जीतने के कारण अर्जुन का यह नाम पड़ा।
- कपिध्वज – महावीर हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहते थे, अतः इनका नाम कपिध्वज पड़ा।
- गुडाकेश – ‘गुडा’ कहते हैं निद्रा को। अर्जुन ने निद्रा को जीत लिया था, इसी से उनका यह नाम पड़ा था।
- पार्थ – अर्जुन की माता कुंती का दूसरा नाम ‘पृथा’ था, इसीलिए वे पार्थ कहलाये।
- परन्तप – जो अपने शत्रुओं को ताप पहुँचाने वाला हो, उसे परन्तप कहते हैं।
- कौन्तेय – कुंती के नाम पर ही अर्जुन कौन्तेय कहे जाते हैं।
- पुरुषर्षभ – ‘ऋषभ’ श्रेष्ठता का वाचक है। पुरुषों में जो श्रेष्ठ हो, उसे पुरुषर्षभ कहते हैं।
- भारत – भरतवंश में जन्म लेने के कारण ही अर्जुन का भारत नाम हुआ।
- किरीटी – प्राचीन काल में दानवों पर विजय प्राप्त करने पर इन्द्र ने इन्हें किरीट (मुकुट) पहनाया था, इसीलिए अर्जुन किरीटी कहे गये।
- महाबाहो – आजानुबाहु होने के कारण अर्जुन महाबाहो कहलाये।
- फाल्गुन – फाल्गुन का महीना एवं फल्गुनः इन्द्र का नामान्तर भी है। अर्जुन इन्द्र के पुत्र हैं। अतः उन्हें फाल्गुन भी कहा जाता है।
- सव्यसाची – ‘महाभारत’ में अर्जुन के इस नाम की व्याख्या इस प्रकार है-
उभौ ये दक्षिणौ पाणी गांडीवस्य विकर्षणे। तेन देव मनुष्येषु सव्यसाचीति माँ विदुः।।
अर्थात् जो दोनों हाथों से धनुष का संधान कर सके, वह देव मनुष्य सव्यसाची कहा जाता है।
- उपरोक्त के अतिरिक्त अर्जुन के निम्न नाम भी हैं-
- किसी संग्राम में जाने पर अर्जुन शत्रुओं को जीते बिना कभी नहीं लौटे, इसीलिए उनका एक नाम ‘विजय’ भी है।
- उनके रथ पर सदैव सुनहरे और श्वेत अश्व जुते रहते हैं, इससे उनका नाम ‘श्वेतवाहन’ है।
- युद्ध करते समय वे कोई भयानक काम नहीं करते, इसीलिए ‘बीभत्सु’ कहलाए।
- दुर्जय का दमन करने के कारण वे ‘जिष्णु’ कहे जाते हैं।
- उनका वर्ण श्याम और गौर के बीच का था, इसीलिए ‘कृष्ण’ भी कहे गये।
- ‘गीता’ में आने वाले नाम- ‘पार्थ’, ‘भारत’, ‘धनंजय’, ‘पृथापुत्र’, ‘परन्तप’, ‘गुडाकेश’, ‘निष्पाप’ तथा ‘महाबाहो’, ये सभी अर्जुन के ही सम्बोधन हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 124 |
बाहरी कड़ियाँ
- अर्जुन के अन्य नाम
- अर्जुन के विधिक नाम
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