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सबसे आम कारण है सूरज की रोशनी के संपर्क में कम आना, आमतौर पर जब आहार में कम विटामिन D लिया जाता है, लेकिन कुछ विकारों के कारण भी इनकी डेफ़िशिएंसी हो सकती है।
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भरपूर विटामिन D के बिना, मांसपेशियों और हड्डियों में कमज़ोरी और दर्द होता है।
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शिशुओं में रिकेट्स विकसित होता है: मस्तिष्क मुलायम हो जाता है, हड्डियां असामान्य रूप से बढ़ती हैं, और शिशु को बैठने और रेंग कर चलने में समय लग जाता है।
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निदान की पुष्टि के लिए रक्त जांच की जाती हैं और कभी-कभी एक्स-रे लिए जाते हैं।
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क्योंकि स्तन के दूध में विटामिन D कम होता है, इसलिए जन्म से ही, स्तनपान करने वाले शिशुओं को विटामिन D सप्लीमेंट दिए जाने चाहिए।
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मुख-मार्ग से या इंजेक्शन से विटामिन D सप्लीमेंट्स लेने पर यह आमतौर पर पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
(विटामिन्स का अवलोकन भी देखें।)
आहार-पोषण के लिए विटामिन D के दो रूप महत्वपूर्ण हैं:
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विटामिन D2 (एर्गोकैल्सीफेरोल): यह रूप पौधों और खमीर के प्रीकर्सरों से सिंथेसाइज़ होता है। इस रूप को आमतौर पर ज़्यादा खुराक वाले सप्लीमेंट्स में भी उपयोग किया जाता है।
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विटामिन D3 (कोलेकैल्सीफेरोल): यह रूप विटामिन D का सबसे सक्रिय रूप है। यह त्वचा में तब बनता है जब त्वचा सीधे धूप के संपर्क में आती है। सबसे आम खाद्य स्रोत हैं फोर्टीफ़ाइड फूड्स, खासतौर पर अनाज और डेयरी उत्पाद। विटामिन D3 मछली के लिवर के तेल, वसायुक्त मछली, अंडे की जर्दी और लिवर में भी मौजूद होता है और सप्लीमेंट में इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे आम रूप है।
विटामिन D मुख्य रूप से लिवर में जमा होता है। विटामिन D2 और D3 शरीर में कोई काम नहीं करते हैं। दोनों रूपों को लिवर और किडनी द्वारा प्रोसेस (मेटाबोलाइज्ड) करके सक्रिय विटामिन D या कैल्सीट्राइऑल नामक सक्रिय रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए। यह एक्टिव रूप, आंत से कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण में मदद करता है। हड्डियों को मज़बूत और घना बनाने के लिए उनमें कैल्शियम और फास्फोरस, जो मिनरल हैं, को शामिल किया जाता है (एक प्रक्रिया जिसे मिनरलाइज़ेशन कहा जाता है)। इसलिए, कैल्सीट्रियोल हड्डियों के बनने, विकास और मरम्मत के लिए आवश्यक है।
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विटामिन D का इस्तेमाल सोरियसिस, हाइपोपैराथायरॉइडिज़्म औररीनल ओस्टियोडिस्ट्रॉफ़ी के इलाज के लिए किया जा सकता है। जीवन प्रत्याशा बढ़ाने या ल्यूकेमिया और स्तन, प्रोस्टेट, कोलोन या अन्य कैंसर को रोकने में इसकी प्रभाविता साबित नहीं हुई है। विटामिन D सप्लीमेंटेशन, डिप्रेशन या हृदय रोग का प्रभावी ढंग से इलाज या रोकथाम नहीं करता है और एक्यूट श्वसन तंत्र संक्रमण (जैसे निमोनिया या सामान्य जुकाम) की रोकथाम पर इसका बहुत कम प्रभाव पड़ता है। विटामिन D और कैल्शियम दोनों की संयुक्त सुझाई गई आहार मात्रा लेने से विटामिन D की कमी वाले लोगों में गिरने का जोख़िम थोड़ा कम हो सकता है, खासकर जो देखभाल के लिए संस्थान में भर्ती हैं। हालांकि, विटामिन D की बड़ी खुराक फ्रैक्चर के जोख़िम को बढ़ा सकती है।
लोगों की उम्र बढ़ने के साथ, विटामिन D की आवश्यकताएं भी बढ़ जाती हैं।
विटामिन A, E और K की तरह ही विटामिन D भी फैट-सॉल्युबल विटामिन है, जो फैट में घुल जाता है और थोड़े फैट के साथ खाने पर सबसे अच्छी तरह से अवशोषित होता है।
दुनिया भर में विटामिन D की डेफ़िशिएंसी आम है। विटामिन D की डेफ़िशिएंसी में, शरीर कम कैल्शियम और कम फॉस्फेट को अवशोषित करता है। क्योंकि हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कैल्शियम और फॉस्फेट भरपूर मात्रा में उपलब्ध नहीं होते, इसलिए विटामिन D की डेफ़िशिएंसी से हड्डी का विकार हो सकता है जिसे बच्चों में रिकेट्स या वयस्कों में ऑस्टियोमलेशिया कहा जाता है। ऑस्टियोमलेशिया में, शरीर हड्डियों में कैल्शियम और अन्य मिनरलों को भरपूर मात्रा में जमा नहीं कर पाता है, जिसकी वजह से हड्डियां कमजोर होती हैं।
एक गर्भवती महिला में, विटामिन D की डेफ़िशिएंसी से गर्भस्थ शिशु में भी इसकी डेफ़िशिएंसी होती है और नवजात शिशु में रिकेट्स विकसित होने का जोख़िम बढ़ जाता है। कभी-कभी, ये कमी काफी गंभीर होती है जिससे महिलाओं में ऑस्टियोमलेशिया होता है। विटामिन D की डेफ़िशिएंसी से ऑस्टियोपोरोसिस बिगड़ जाता है।
विटामिन D की डेफ़िशिएंसी से रक्त में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है। कैल्शियम के घटे स्तर को बढ़ाने की कोशिश करने के लिए, शरीर ज़्यादा पैराथाइरॉइड हार्मोन बना सकता है। हालांकि, जैसे ही पैराथाइरॉइड हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है (एक स्थिति जिसे हाइपरपैराथायराइडिज्म) कहा जाता है, रक्त में कैल्शियम के स्तर को बढ़ाने के लिए यह हार्मोन हड्डी के कैल्शियम को बाहर निकालता है। पैराथाइरॉइड हार्मोन की वजह से भी पेशाब में ज़्यादा फॉस्फेट बाहर निकलता है। हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कैल्शियम और फॉस्फेट दोनों आवश्यक हैं। ऐसा होने पर, हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
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