18 जून को शनि कुंभ राशि में वक्री हो रहा है। शनि के चाल बदलने की तारीख को लेकर पंचांग भेद भी हैं, कुछ पंचांग में शनि के वक्री होने की तारीख 17 बताई गई है। वक्री होने का सरल अर्थ ये है कि शनि अब उल्टा चलने लगा और मार्गी होने का मतलब है ग्रह का सीधा चलना। शनि के वक्री होने से इस ग्रह का सभी 12 राशियों पर असर भी बदल जाएगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शनि 18 जून से 4 नवंबर तक वक्री ही रहेगा, इस बार शनि पूरे समय कुंभ राशि में ही रहेगा। शनि की वजह से कुछ लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। शनि के दोषों को खत्म करने के लिए सभी लोगों को शनि की पूजा करनी चाहिए और शनि के 10 नाम मंत्रों का जप करना चाहिए।
ऐसी है साढ़ेसाती और ढय्या की स्थिति
शनि इस समय कुंभ राशि में है। मकर राशि पर शनि की साढ़ेसाती का अंतिम ढय्या चल रहा है। कुंभ राशि पर दूसरा और मीन राशि पर साढ़ेसाती का पहला ढय्या है। इन तीन राशियों के अलावा कर्क और वृश्चिक राशि पर शनि का ढय्या चल रहा है। शनि की वजह से इन राशियों को सतर्कता के साथ काम करने की जरूरत है।
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ये है शनि के 10 नाम वाला मंत्र
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
इस मंत्र में शनि के दस नाम कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद और पिप्पलाद हैं। इन नामों का जप रोज सुबह पूजा करते समय करना चाहिए। अगर रोज पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो कम से कम हर शनिवार पूजा करें और इन मंत्रों का जप करें।
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घर के मंदिर में या किसी अन्य मंदिर में भगवान की पूजा करते समय भी शनि के मंत्रों का जप कर सकते हैं। पूजा करते समय शनि देव का ध्यान करें। धूप-दीप जलाएं। फूल-प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद शनि के 10 नाम वाले मंत्र का जप 108 बार करें।
अगर मंत्र का उच्चारण ठीक से नहीं कर पा रहे हैं तो शनि के 10 नामों का जप कर सकते हैं। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करेंगे तो बेहतर रहेगा। शनि को नीले फूल चढ़ाना चाहिए। पूजा के साथ ही जरूरतमंद लोगों को काले तिल और तेल का दान करें।
सूर्य पुत्र हैं शनि देव
शनि सूर्य देव के पुत्र हैं। यमराज और यमुना इनके सौतेले भाई-बहन हैं। सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा देवी है। यमराज और यमुना संज्ञा की संतान हैं। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थीं, तब उन्होंने अपनी छाया को सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई थीं। इसके बाद सूर्य और छाया की संतान के रूप में शनि देव का जन्म हुआ था।
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