LIBRARY(पुस्तकालय) KV-1,JIPMER CAMPUS, SH-2

अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् |अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् ||Meaningजो आलस करते हैं उन्हें विद्या नहीं मिलती, जिनके पास विद्या नहीं होती वो धन नहीं कमा सकता, जो निर्धन हैं उनके मित्र नहीं होते और मित्र के बिना सुख की प्राप्ति नहीं होती

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||Meaningमनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसमे बसने वाला आलस्य हैं | मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका परिश्रम हैं जो हमेशा उसके साथ रहता हैं इसलिए वह दुखी नहीं रहता |

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||Meaningरथ कभी एक पहिये पर नहीं चल सकता हैं उसी प्रकार पुरुषार्थ विहीन व्यक्ति का भाग्य सिद्ध नहीं होता |

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||Meaningजो व्यक्ति कर्मठ नहीं हैं अपना धर्म नहीं निभाता वो शक्तिशाली होते हुए भी निर्बल हैं, धनी होते हुए भी गरीब हैं और पढ़े लिखे होते हुये भी अज्ञानी हैं |

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं ,मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति |चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं ,सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||Meaningअच्छी संगति जीवन का आधार हैं अगर अच्छे मित्र साथ हैं तो मुर्ख भी ज्ञानी बन जाता हैं झूठ बोलने वाला सच बोलने लगता हैं, अच्छी संगति से मान प्रतिष्ठा बढ़ती हैं पापी दोषमुक्त हो जाता हैं | मिजाज खुश रहने लगता हैं और यश सभी दिशाओं में फैलता हैं | मनुष्य का कौनसा भला नहीं होता |

चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||Meaningचन्दन को संसार में सबसे शीतल लेप माना गया हैं लेकिन कहते हैं चंद्रमा उससे भी ज्यादा शीतलता देता हैं लेकिन इन सबके अलावा अच्छे मित्रो का साथ सबसे अधिक शीतलता एवम शांति देता हैं |

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |Meaningतेरा मेरा करने वाले लोगो की सोच उन्हें बहुत कम देती हैं उन्हें छोटा बना देती हैं जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका परिवार होता हैं |

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||Meaningमहर्षि वेदव्यास ने अपने पुराण में दो बाते कही हैं जिनमें पहली हैं दूसरों का भला करना पुण्य हैं और दुसरो को अपनी वजह से दुखी करना ही पाप है |

विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च |व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य च ||Meaningयात्रा के समय ज्ञान एक मित्र की तरह साथ देता हैं घर में पत्नी एक मित्र की तरह साथ देती हैं, बीमारी के समय दवाएँ साथ निभाती हैं अंत समय में धर्म सबसे बड़ा मित्र होता हैं |

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् |वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ||Meaningजल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्यूंकि बिना सोचे किया गया कार्य घर में विपत्तियों को आमंत्रण देता हैं |जो व्यक्ति सहजता से सोच समझ कर विचार करके अपना काम करते हैं लक्ष्मी स्वयम ही उनका चुनाव कर लेती हैं

अयं निजः परो वेति गणना तघुचेतसाम्।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

Meaning:

Consideration like “he is mine or he is another’s” occur only to the narrow-minded people. To the broad-minded people, the whole world is their family.

छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।

फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।

Meaning:

Trees stand in the sun and give shade to others. Their fruits are also for others like good people do.

उद्यमेनैव सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।

Meaning:

Success in life can be achieved only by hard work and not by merely wishing for it. No animal will enter into the mouth of a lion that is sleeping.

न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।

अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।।

Meaning:

Nobody knows what will happen and to whom, tomorrow. Hence, a wise man should do today itself what is scheduled for tomorrow.

वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं दुकूलैः

सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः।

स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला

मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः

Meaning:

A Yogin says to a kind: “I am here (in the hermitage) content with garments made of bark, while you are happy with your silken ones. Our contentment is the same. There is no difference whatsoever. He who has abundant desire is poor. When there is contentment in the mind, who is rich and who is poor?

उपकारिषु यः साधुः साधुत्वे तस्य को गुणः।

अपकारिषु यः साधुः स साधुरिति कीर्तितः।।

Meaning:

If one is good to those who do good to him, of what merit is one’s goodness? It is only he, who is good to even those who do harm to him, is called a saint.

सदयं हृदयं यस्य भाषितं सत्यभूषितम्।

कायः परहिते यस्य कलिस्तस्य करोति किम्।।

Meaning:

What (harm) can Kalipuruṣa do to him, whose heart is full of kindness, whose speech is adorned with truth, and whose body is for the good of others.

आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।

पादं सब्रह्मचारिभ्यः पादं कालक्रमेण च।।

Meaning:

A pupil learns only a quarter from his teacher; acquires another quarter from self-study; receives another quarter from his classmates; and get the remaining quarter in course of time.

न किञ्चित् सहसा कार्यं कार्यं कार्यविदा क्वचित्।

क्रियते चेत् विविच्यैव तस्य श्रेयः करस्थितम्।।

Meaning:

Never should a wise man do a work in haste. If he does it with due deliberation, success is surely in his hands.

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।

ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।।

Meaning:

An indiscriminate individual must be kept away in the interest of the family. If it is in the interest of the village, a family must be sacrificed. A village may be abandoned for the sake of a district. One must leave the world for self-realization.