अप्रैल 2014 से अप्रैल 2024 के बीच नरेंद्र मोदी की ही सरकार रही है (शुरुआत के कुछ दिन को छोड़ दें तो)। इस बीच डॉलर (अमेरिकी) के मुकाबले रुपया 27.6% गिरकर 60.34 रुपये से 83.38 रुपये पर आ गया है। इसका मतलब ये हुआ कि अप्रैल 2014 में 1 डॉलर = 63.34 रुपया था, जो अब 1 डॉलर = 83.38 रुपया हो गया है।
कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार की तुलाना में मोदी सरकार में रुपया थोड़ा ज्यादा कमजोर हुआ है। अप्रैल 2004 के अंत से अप्रैल 2014 के अंत तक डॉलर (अमेरिकी) के मुकाबले रुपया 26.5% गिरा था। उस अवधि में डॉलर के मुकाबले रुपया 44.37 से गिरकर 60.34 पर आ गया था।
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गिरकर भी मजबूत हुआ है रुपया!
भारत केवल अमेरिका के साथ व्यापार नहीं करता है। यह अन्य देशों को वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात भी करता है और उनसे आयात भी करता है। इसलिए, रुपये की ताकत या कमजोरी न केवल अमेरिकी डॉलर, बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के साथ इसके एक्सचेंज रेट पर भी निर्भर करती है।
मोदी सरकार के 10 वर्षों में भारतीय मुद्रा में डॉलर के मुकाबले कांग्रेस के नेतृत्व वाले 10 वर्षों की तुलना में अधिक गिरावट देखी गई है। लेकिन अगर सभी प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के साथ इसके एक्सचेंज रेट को देखा जाए तो रुपया ‘असल’ में मजबूत हुआ है।
जहां अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की ताकत कम हुई है, वहीं देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के सामने रुपया ‘मजबूत’ हुआ है। इसे जिसे रुपया का “Effective Exchange Rate” या EER कहा जाता है।
EER को कैसे मापा जाता है?
EER को कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के समान सूचकांक द्वारा मापा जाता है। CPI एक निश्चित आधार अवधि के सापेक्ष किसी दिए गए महीने या वर्ष में उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गये सामानों और सेवाओं के औसत मूल्य को मापने वाला एक सूचकांक है। EER भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं की तुलना में रुपये की एक्सचेंज रेट्स के औसत वेटेज का एक सूचकांक है। करेंसी का वेटेज भारत के कुल विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों की हिस्सेदारी से प्राप्त होता है, जैसे सीपीआई में प्रत्येक वस्तु का वेटेज कुल खरीदे गए सामान के सापेक्ष महत्व पर आधारित होता है।
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EER को दो तरह से मापा जाता है।
पहला तरीका है- नॉमिनल ईईआर या NEER
भारतीय रिज़र्व बैंक ने छह और 40 मुद्राओं के अलग-अलग ग्रुप से तुलना के लिए रुपये के NEER सूचकांक का बनाया है। पहले वाले ग्रुप के साथ जो आरबीआई जो सूचकांक बनाता है, उसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और हांगकांग डॉलर शामिल हैं। बाद वाला सूचकांक उन देशों की 40 मुद्राओं की एक बड़े बास्केट को कवर करता है जो भारत के सालाना व्यापार का लगभग 88% हिस्सा हैं।
चार्ट 1 से पता चलता है कि रुपये की 40 करेंसी वाले बास्केट में NEER 2004-05 और 2023-24 के बीच लगभग 32.2% (133.8 से 90.8 तक) गिर गया है। 6 करेंसी वाले बास्केट में ये गिरावट और भी ज्यादा है। समान अवधि में 40.2% की गिरावट के साथ NEER 139.8 से 83.7 पर पहुंच गया है। लेकिन इसी अवधि की तुलना सिर्फ अमेरिकी डॉलर से करें तो रुपया का औसत एक्सचेंज रेड 45.7% गिरकर 44.9 रुपये से 82.8 रुपये हो गया है।
चार्ट-1
सीधे शब्दों में कहें तो, पिछले 20 वर्षों में भारत के सभी प्रमुख ट्रेड पार्टनर्स की मुद्राओं के मुकाबले रुपये का 32.2 से 40.2% गिरा है। लेकिन इस अवधि में अकेले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 45.7% गिर गया है। इसका कारण इसका डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं के मुकाबले कम कमजोर होना है।
इसके अलावा, चार्ट से पता चलता है कि NEER में बड़ी गिरावट 2004-05 से 2013-14 के दौरान हुई। वास्तव में रुपया इसके बाद 2017-18 तक मजबूत हुआ।
दूसरा तरीका है- रियल EER या REER
NEER एक समरी इन्डेक्स है, जो वैश्विक मुद्राओं के एक बास्केट के मुकाबले रुपये के बाहरी मूल्य में उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। हालांकि, NEER मुद्रास्फीति को ध्यान में नहीं रखता है, जो रुपये के आंतरिक मूल्य में परिवर्तन को दर्शाता है।
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उदाहरण के लिए, इंडोनेशियाई रुपया पिछले एक साल में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 8.5% गिर गया है। इस अवधि के दौरान भारतीय रुपये में सिर्फ 1.7% की गिरावट आई है। लेकिन भारत की वार्षिक सीपीआई मुद्रास्फीति दर इंडोनेशिया से ज्यादा थी। मार्च में भारत में वार्षिक सीपीआई मुद्रास्फीति दर 4.9% थी और इंडोनेशिया 3.1%।
इस प्रकार इंडोनेशियाई मुद्रा की घरेलू क्रय शक्ति को उसकी अंतरराष्ट्रीय क्रय शक्ति की तुलना में कम नुकसान का सामना करना पड़ा है, जबकि रुपये के लिए यह विपरीत रहा है।
REER मूल रूप से NEER है जिसे घरेलू देश और उसके व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति के अंतर के लिए समायोजित किया जाता है। यदि किसी देश का नॉमीनल एक्सचेंज रेट उसके घरेलू मुद्रास्फीति दर से कम हो जाती है तो करेंसी वास्तव में मजबूत हुई है, जैसा कि भारत के साथ हुआ है।
चार्ट 2 पिछले 20 वर्षों के लिए रुपये के ट्रेड वेटेज REER को दर्शाता है। यह देखा जा सकता है कि समय के साथ रुपया वास्तविक रूप से मजबूत हुआ है, जबकि मोदी सरकार के 10 वर्षों में से 9 वर्षों में रुपया 100 या उससे ऊपर रहा है। यदि कोई केवल रुपये के NEER या अमेरिकी डॉलर के साथ इसके एक्सचेंज रेट को लेता है तो यह कमजोर होने की प्रवृत्ति के विपरीत है।
चार्ट-2
यदि कोई मानता है कि 2015-16 में रुपये का मूल्य “ठीक” था, जब EER सूचकांक 100 पर सेट किए गए थे, तो 100 से ऊपर का कोई भी मूल्य ओवरवैल्यूएशन को दर्शाता है। उस हद तक, रुपया आज अपने REER के संदर्भ में अधिक मूल्यवान है।
REER में किसी भी वृद्धि का मतलब है कि भारत से निर्यात किए जा रहे उत्पादों की लागत देश में आयात की कीमतों से अधिक बढ़ रही है। इसका मतलब व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता (trade competitiveness) का नुकसान है – जो भविष्य के लिए अच्छी बात नहीं हो सकती है।
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