Shlokas of Sanskrit With Hindi Meaning – संस्कृत के श्लोक न केवल हमारे प्राचीन ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि वे बच्चों को नैतिकता, अनुशासन और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को सिखाने का एक प्रभावी माध्यम भी हैं। इस पोस्ट में, हम बच्चों के लिए महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत कर रहे हैं। ये श्लोक बच्चों के नैतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होंगे। संस्कृत के इन श्लोकों (Sanskrit Shlokas) को जानने और समझने से बच्चे न केवल भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ेंगे, बल्कि उनमें सच्चाई, ईमानदारी और सहानुभूति जैसे गुणों का भी विकास होगा। आइए, इन श्लोकों को जानें और बच्चों को भी सिखाएं।
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बच्चों के लिए 10 संस्कृत के श्लोक अर्थ के साथ | 10 Slokas of Sanskrit Should Taught in Childhood
प्रस्तुत है यहाँ sanskrit shlok in sanskrit with meaning :-
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विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थ: विद्या विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है। योग्यता से धन की प्राप्ति होती है, और धन से धर्म और अंततः सुख की प्राप्ति होती है। अर्थात, विद्या से व्यक्ति में अच्छे गुण आते हैं, जिससे वह योग्य बनता है। योग्यता से उसे आर्थिक सफलता मिलती है, जो उसे धर्म और सुख की ओर ले जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए विद्या ही मूल आधार है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः।गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अर्थ: गुरु ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि के रचयिता हैं; गुरु विष्णु हैं, जो सृष्टि के पालक हैं; गुरु महेश्वर हैं, जो सृष्टि के संहारक हैं। गुरु साक्षात् परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ। इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि गुरु ही हमें सृजन, पालन और संहार की महत्ता सिखाते हैं और वे हमें परम सत्य की ओर ले जाते हैं। गुरु का स्थान परम पवित्र और महान होता है।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।नास्त्युद्यम समो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
अर्थ: आलस्य मनुष्य के शरीर में स्थित एक महान शत्रु है। परिश्रम के समान कोई मित्र नहीं है; जो व्यक्ति परिश्रम करता है, वह कभी दुखी नहीं होता। इस श्लोक का तात्पर्य है कि आलस्य से मनुष्य का पतन होता है और उसे प्रगति नहीं मिलती। जबकि, परिश्रम से मनुष्य को सफलता और संतोष प्राप्त होता है। इसलिए आलस्य का त्याग कर परिश्रम को अपना मित्र बनाना चाहिए।
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रूप यौवन सम्पन्नाः विशाल कुल सम्भवाः।विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः।।
अर्थ: सुंदरता, यौवन और ऊँचे कुल में जन्म लेने के बावजूद, अगर व्यक्ति विद्या से हीन है, तो वह शोभा नहीं पाता, जैसे बिना सुगंध के पलाश का फूल। इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि केवल बाहरी सुंदरता, यौवन और उच्च कुल का होना पर्याप्त नहीं है; विद्या ही व्यक्ति को वास्तविक शोभा और सम्मान देती है। विद्या के बिना व्यक्ति की स्थिति सुगंध रहित फूल के समान होती है।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
अर्थ: एक आदर्श विद्यार्थी के पाँच गुण होते हैं: कौए जैसी चेष्टा (लगन और परिश्रम), बगुले जैसा ध्यान (एकाग्रता), कुत्ते जैसी नींद (कम सोना और जागरूकता), अल्प भोजन (संयम और साधारण भोजन) और घर का त्याग (अध्ययन के प्रति पूर्ण समर्पण)। इन गुणों के साथ विद्यार्थी अपने अध्ययन में सफल हो सकता है। यह श्लोक यह बताता है कि एक विद्यार्थी को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पण, संयम, सतर्कता, एकाग्रता और परिश्रम की आवश्यकता होती है।
सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
अर्थ: सभी लोग सुखी हों, सभी लोग निरोगी हों। सभी लोग शुभ घटनाएँ देखें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े। इस श्लोक का तात्पर्य है कि हम सबकी कामना यह है कि पूरे विश्व में सभी लोग खुशहाल और स्वस्थ जीवन व्यतीत करें। सबके जीवन में केवल शुभ घटनाएँ हों और किसी को भी दुख या पीड़ा का सामना न करना पड़े। यह श्लोक सार्वभौमिक शांति, स्वास्थ्य और कल्याण की प्रार्थना करता है।
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे।हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते।।
अर्थ: मूर्ख के पाँच लक्षण होते हैं: गर्व करना, मुंह से बुरे वचन निकालना, हठी होना, हमेशा उदास रहना, और दूसरों की बातों को नहीं मानना। इस श्लोक का तात्पर्य है कि मूर्ख व्यक्ति में इन पांच गुणों की पहचान होती है जो उसकी मूर्खता को दर्शाते हैं। ऐसे व्यक्ति में अहंकार, बुरे बोल, जिद्दी स्वभाव, निराशा और दूसरों की सलाह को न मानने की प्रवृत्ति होती है।
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ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थ: हे ईश्वर! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो। हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। हमें मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। ॐ शांति, शांति, शांति। इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें झूठ और अज्ञानता से दूर कर सत्य और ज्ञान की ओर ले जाए, अंधकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करे, और मृत्यु के भय से मुक्त कर अमरता और आत्मिक शांति प्रदान करे। तीन बार ‘शांति’ का उच्चारण हमें मन, वचन, और कर्म में शांति की कामना के लिए है।
अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्।अन्नेन क्षणिका तृप्तिः यावज्जीवञ्च विद्यया॥
अर्थ: अन्नदान सबसे बड़ा दान है, लेकिन विद्या का दान उससे भी श्रेष्ठ है। अन्न से केवल क्षणिक तृप्ति मिलती है, जबकि विद्या जीवन भर तृप्ति देती है। इस श्लोक का तात्पर्य है कि किसी को भोजन कराना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भूख मिटती है, लेकिन शिक्षा का दान सर्वोत्तम है क्योंकि यह व्यक्ति को जीवनभर के लिए सशक्त और आत्मनिर्भर बनाता है।
काम क्रोध अरु स्वाद, लोभ शृंगारहिं कौतुकहिं।अति सेवन निद्राहि, विद्यार्थी आठौ तजै।।
अर्थ: एक आदर्श विद्यार्थी को काम (इच्छा), क्रोध (गुस्सा), स्वाद (स्वादिष्ट भोजन की लालसा), लोभ (लालच), श्रृंगार (सजना-संवरना), कौतुक (आकर्षण), अति सेवन (अत्यधिक भोग) और अधिक निद्रा (ज्यादा सोना) इन आठ दोषों का त्याग करना चाहिए। इस श्लोक का तात्पर्य है कि विद्यार्थी को इन सभी दोषों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि ये उसकी शिक्षा और चरित्र निर्माण में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। इन दोषों का त्याग करके ही विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में सफल हो सकता है और एक अच्छा इंसान बन सकता है।
(Sanskrit Shlokas With Meaning In Hindi)
हमें उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक सिद्ध होगी। बच्चों को ये श्लोक (Sanskrit Shlok) सिखाएं और उन्हें एक मजबूत नैतिक आधार प्रदान करें। इन श्लोकों को जानकर और समझकर बच्चे न केवल अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ेंगे, बल्कि नैतिकता और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को भी आत्मसात करेंगे। धन्यवाद!!
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