भगवान शिव जिनका न आदि है न अंत। उन्हें स्वयंभू भी कहां जाता हैं । शिव महापुराण और अन्य पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने अधर्म का सर्वनाश करने के लिए रूद्र अवतार और अंशअवतार लिए है। “रूद्र” शब्द का अर्थ होता है अति भयानक या एक आंधी। दुःख का और आपत्ति का संहार और शत्रु के सामने भयानक क्रोधी रूप लेकर उन्हें रुलाने के कारण शिव का एक नाम रूद्र है ।
धार्मिक ग्रंथों में “रूद्रः परमेश्वरः जगत सृष्टा रूद्रः” कहकर भगवान शिव को परमात्मा माना गया है यजुर्वेद का रूद्र अध्याय भगवान शिव के रूद्र रूप को ही समर्पित हैं । भगवान शिव के ये रुद्र अवतार अति भयानक और महाशक्तिशाली हैं। आइए जानते है भगवान शिव के रूद्र और अन्य अवतारों की क्या कथा है।
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पुराणों में भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों के तरह भगवान शिव के अवतारों का भी उल्लेख है। भगवान शिव के उन्नीस अंशावतारों का वर्णन है। और भगवान शिव के ग्यारह रूद्र अवतार हैं जिन्हे एकादस रूद्र भी कहां जाता है।
भगवान शिव के ग्यारह रूद्र अवतार
- कपाली
- पिंगल
- भीम
- विरुपाक्ष
- विलोहित
- शास्ता
- अजपाद
- आपिर्बुध्य
- शम्भू
- चण्ड
- भव
भगवान शिव के उन्नीस अंश अवतार
- वीरभद्र
- पिप्पलाद
- नंदी
- भैरव
- अश्वत्थामा
- शर्भेश्वर
- गृहपति
- महर्षि दुर्वासा
- हनुमान
- वृषभ
- यतिनाथ
- कृष्णदर्शन
- अवदूत
- भिक्षु
- सुरेश्वर
- किरात
- ब्रह्मचारी
- सुनटनर्तक
- यक्ष
भगवान शिव के 11 रूद्र अवतारों की कथा जिन्हे एकादस रूद्र कहते है।
शिव पुराण के अनुसार जब राक्षसों ने देवताओं का राज्य अमरावतीपुरी पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित कर दिया । पश्चात सभी देवताओं ने अपना राज्य छोड़कर उनके पिता महर्षि कश्यप आश्रम में जाकर उनकी भेट ली । देवताओंने महर्षि कश्यप को राक्षसों का कृत्य बताया। यह सुन महर्षि कश्यप क्रोधित हो गए और देवताओं को इसका समाधान निकालने का आश्वासन देकर वे काशीपुरी चले गए।
महर्षि कश्यप भगवान शिव के अनन्य भक्त थे देवताओं के समस्या के समाधान के लिए उन्होंने काशीपुरी में भगवान शिव की कठिन तपस्या की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वर मांगने की इच्छा बताई । महर्षि कश्यप ने भगवान शिव को असुरों का कृत्य बताया । भगवान शिव ने देवताओं के कष्ट का निवारण करने के लिए महर्षि कश्यप पुत्रों के रूप में अवतार लेने का वरदान दिया।
कुछ समय पश्चात महर्षि कश्यप की पत्नी सुरभि के गर्भ से भगवान शिव के एकादश रूद्र अवतारों का जन्म हुआ । महर्षि कश्यप की पत्नी सुरभि ने कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड, और भव नाम के ग्यारह या एकादस रूद्र अवतारों को जन्म दिया। भगवान शिव के ये रूद्र अवतार अतिबलशाली और पराक्रमी थे उन्होंने राक्षसों को पराजित कर देवताओं को उनका राज्य पुनः लौटाया । भगवान शिव के इन रूद्र आवतारों के वजह से संपूर्ण जगत शिवमय हो गया।
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भगवान शिव के 19 अवतार
वीरभद्र अवतार : माता सती के पिता दक्ष परमपिता ब्रह्मा का पुत्र था दक्ष भगवान शिव को बिलकुल नहीं पसंद करता था। परंतु माता सती भगवान शिव से प्रेम करती थी । एक बार दक्ष में माता सती के सामने भगवान शिव बारे में अपशब्द कहे और उनका अपमान कर दिया । माता सती ने यह सुन ना सकी और वही के एक यज्ञकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी, भगवान शिव इस घटना से बोहोत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने का सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे दोषपुर्वक पर्वत पर पटक दिया। इस जटा से अत्यंत क्रोधि वीरभद्र प्रकट हुआ वीरभद्र में दक्ष का सिर काट कर उसको मृत्यु दंड दे दिया।
पिप्पलाद अवतार : पिप्पलाद उपनिषदकालीन एक महान ऋषि थे । एक बार ऋषि पिप्पलाद ने अपने जन्म से पहले ही पिता के जाने का कारण देवताओं से पूछा तब देवता ने शनिदेव के कुदृष्टि को इसका जिम्मेदार बताया यह सुन ऋषि पिप्पलाद अत्यंत क्रोधित हो गए और शनिदेव को नक्षत्र से गिरने का श्राप दे दिया। अन्य देवताओं की प्रार्थना पर ऋषि पिप्पलाद इस अपना श्राप इस शर्त पर निष्क्रिय कर दिया की शनिदेव जन्म से सोलह साल तक की उम्र तक किसी पर भी मनुष्य पर अपनी कुदृष्टी नहीं डालेंगे।
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नंदी अवतार : नंदी भगवान शिव के अनन्य भक्त और शिव के नॄषभ वाहन कहे जाते हैं। नंदी के पिता शिलाद मुनि ब्रम्हचारी थे । उन्होंने आपने पूर्वजों के इच्छा के अनुसार सन्तान प्राप्ति के भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और भगवान शिव के वरदान के कारण खेत जोतते समय उन्हें धरती से एक पुत्र प्राप्त हुआ जिनका नाम उन्होंने नंदी रखा।
भैरव अवतार : “भैरव” शब्द का अर्थ है “भयंकर रूप अधिपति” शिव पुराण के अनुसार भैरव को भगवान शिव का पूर्ण अवतार कहा गया है । प्राचीन काल अंधकासुर नाम का एक क्रूर राक्षस हुआ करता था। अंधकासूर ने पापीकृत्य, हाहाकार अनीति की सारी सीमाएं तोड़ दी अहंकार में चूर होकर अंधकासुर एक बार भगवान शिव से युद्ध के लिए ललकारने लगा तब भगवान शिव के रुधिर से भैरव की उत्पति हुई। अन्य पुराने के अनुसार भैरव की उत्पत्ति का कथा अलग हैं।
अश्वत्थामा : आचार्य द्रोण महाभारत कालीन पांडवों और कौरवों के गुरु थे आचार्य द्रोण ने भगवान शिव की घोर तपस्या की भगवान शिव के वरदान से आचार्य द्रोण के घर पुत्र के रूप में जन्म किया जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। अश्वत्थामा एक महा बलशाली योद्धा था। महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने पांडवों की पुत्रों का वध कर दिया भगवान श्रीकृष्ण के अपने सुदर्षन चक्र से अश्वत्थामा के कपाल पर वर किया और उन्हें सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर जीवित रहने का श्राप दे दिया।
शर्भेश्वर : राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी भगवान नूरसिंह का क्रोध शांत नही हुआ था तब देवता भगवान शिव के पास गए और उन्हें यह समस्या बताई। तब भगवान ने शर्भेश्वर या शरभ अवतार लिया शर्भेश्वर का रूप आधा सिंग, आधा मनुष्य और आधा शरभ नाम के एक मृग की तरह था (शरभ एक सिंह से भी ज्यादा शक्तिशाली पक्षी है). शरभ अवतार के आठ पैर, दो पंख और सहस्त्र भुजाएं थीं।
गृहपति : शिवपुराण के रूद्र कोटि संहिता के प्रथम खंड के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने भगवान शिव के बाल रूप के दर्शन करने की इच्छा की तब अपने आराध्य भगवान विष्णु की यह इच्छा पूर्ण करने के लिए भगवान शिव ने गृहपति अवतार लिया। भगवान शिव का ये बाल रूप सिर पर चंद्रमा, मुकुट, गले और जटाओं में नाग, और हात में त्रिशूल लिए था।
महर्षि दुर्वासा : महर्षि दुर्वासा अत्रि ऋषि और अनुसया माता पुत्र हैं। प्राचीन कथा के अनुसार त्रिदेवियों को उनके सतीत्व पर गर्व होने लगा को तब भगवान विष्णु ने उनके गर्व को नष्ट करने के लिए एक लीला रही थी । माता अनुसया के के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव ब्राम्हण का रूप लेकर माता अनुसया के आश्रम जा पहुंचे और भिक्षा मांगने लगे त्रिदेवों ने शर्त रखी की हम निर्वस्त्र होकर ही भिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। माता अनुसया ने अपने सतीत्व की शपत लेकर त्रिदेवों को छह-छह मास के शिशु बना दिया और उनकी माता बन कर उन्हें भोग लगाया। माता अनुसया सतीत्व से प्रसन्न होकर त्रिदेव देवों के अंश से माता को तीन पुत्र प्राप्त हुए जिस परमपिता ब्रह्मा से चंद्रदेव भगवान विष्णु के अंश से दत्तात्रेय और रूद्र के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ था।
हनुमान : महाबली हनुमान भी भगवान शिव के ही अवतार है। रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु का त्रेतायुग में राम अवतार हुआ था । तब अपने आराध्य भगवान विष्णु के सेवा के लिए रूद्र ने हनुमान अवतार लिया हनुमान एक महाबलशाली वानर थे । उनकी माता अंजनी और पिता केसरी थे पवनदेव के आशीर्वाद से माता अंजनी को पुत्र प्राप्त हुआ इसली लिए उन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता हैं।
वृषभ : पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु दैत्यों का संहार करने के लिए पाताललोक गए थे वहां उन्हें कई सारी चंद्रमुखी और अतिसुंदर स्त्रीयां मिली भगवान विष्णु ने उनके साथ रमण किया जिनसे कई सारे पुत्र उत्पन हुए। ये पुत्र महा उपद्रवी दे ये धरती और पताल लोक में बोहोत उपद्रव मचाने लेगे । ब्रह्मा और अन्य ऋषिमुयों के प्रार्थना पर उन पुत्रों का वध करने के लिए रूद्र ने वृषभ अवतार लिया
यतिनाथ : धर्म ग्रंथों के अनुसार अरबूदाचल पर्वत के पास अहुक और आहुका नाम के बिल दांपत्य रहते थे वे भगवान शिव के भक्त थे। आहुक और आहूका की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिवने यतिनाथ अवतार लिया था ।
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कृष्णदर्शन अवतार : धर्म ग्रंथों के अनुसार ईश्वाकू वंश की श्राददेव की नववी पीढ़ी में राजा नवक का जन्म हुआ । एक बार राजा नवक काफी समय से विद्या अध्ययन करने गुरुकुल गए थे तब उनके भाईयो ने राज्य आपस में बाट लिया नवक के वापिस लोटने पर उन्होंने अपने पिता से वार्तालाब किया तब उन्होंने नवक को यज्ञ करने को कहां । नवक ने वैष्टदेव सूक्त के साथ यज्ञ किया । तब वहां भगवान शिव कृष्णदर्शन अवतार लेकर प्रकट हो गए । और यज्ञ के धन पर उनका अधिकार बताने लगे । तब कृष्णदर्शन अवतार ने नवक की अपने पिता से निर्णय करने को कहां तब श्राददेव ने बताया यह कृष्णदर्शन की भगवान शिव का अवतार बताया।
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अवदूत अवतार: एक बार देव गुरु बृहस्पति और अन्य देवताओं के साथ इंद्र भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जा रहे थे । इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शिव ने अवधूत रूप लिया और इंद्र का मार्ग रोकने लगे । इंद्र ने अवज्ञापूर्वक अवदुत से उनका परिचय पूछा लेकिन उन्होंने कुछ उत्तर नही दिया । तब इंद्र ने क्रोध से अवदूत अवतार पर वज्र से प्रहार करना चाहा लेकिन इंद्र का हात एक जगह स्तिर हो गया तब गुरु बृहस्पति ने अवदूत भगवान शिव का अवतार बताया और उनकी स्तुति करने लगे।
भिक्षु अवतार : धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरत की शत्रु ने हत्या कर दि उनकी धर्म पत्नी गर्भवती थी उसने अपने प्राण बचाकर वहां से निकल गई कुछ समय पश्चात उसने एक पुत्र को जन्म दिया। एक बार वह नदी से पानी निकल रही थी तो उसे घड़ियाल ने अपना शिकार बना लिया बालक अकेला हो गया और कुटिया में भूख पास से तड़पने लगा तब भगवान शिव ने भिक्षु अवतार लिया और एक भीकारीन को बालक का परिचय दिया और बालक पालन पोषण करने को कहा। बालक बड़ा होने के बाद उसने उन शत्रुओ का वध कर दिया और आपने पिता राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
सुरेश्वर अवतार : भगवान शिव का सुरश्वेर अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को दर्शाता है। भगवान शिव के अपने भक्त बालक उपमन्यु के परीक्षा के लिए सुरेश्वर अवतार लिया था । एक बार बालक उपमन्यु भगवान शिव की के मंत्र का जाप कर रहा था तब सुरेश्वर बालक के सामने शिव का निंदा करने लगे यह सुन बालक उपमन्यु को क्रोध आ गया और वह सुरेश्वर से युद्ध करने ले लिए तैयार हो गया । प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उपमन्यु वास्तविक रूप का दर्शन दिया और उनके परम भक्ति का वरदान दिया।
किरात अवतार : महाभारत के काल में जब पांडव कोरवों से जुए में हार कर वनवास गए थे तब दुर्योधन ने अर्जुन का वध करने के लिए मुड़ नमक दैत्य को भेजा । अर्जुन जिस समय भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे । तब मुड़ सुकर (सुअर) का रूप लेकर अर्जन पर प्रहार करने के लिए भागा , अर्जुन ने अपने धनुष से सुकर पर तीर चलाया उसी समय भगवान शिव के किरात अवतार ने सुकर पर तीर चलाया । दोनों वे इस बात पर विवाद शुरू हो गया की सुकर उनके तीर से मारा गया है । थोड़ी देर विवाद के बाद अर्जुन और किरात अवतार में युद्ध शुरू हो गया । युद्ध में अर्जुन हारने लगा तब भगवान शिव ने अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया । अर्जुन की वीरता से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कोरवो से युद्ध में विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया।
ब्रह्मचारी अवतार : जब सती ने यज्ञकुंड अपने प्राण त्याग दिए थे । पश्चात सती ने पुनः जन्म लिया तब भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तप करने लगी भगवान शिव ब्रह्मचारी अवतार लेकर वहां पहुंचे और शिव की निंदा करने लगे तब माता पार्वती को यह सुन क्रोध आ गया । पश्चात प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपना वास्तविक रूप धारण किया।
सुनटनर्तक अवतार : राजा हिमाचल से उनकी पुत्री पार्वती का हात मांगने के लिए भगवान शिव सुनटनर्तक अवतार लिया । सुनटनर्तक राजा हिमाचल की सभा में डंबरू बजाते हुए सुंदर नृत्य करने लगे राजा हिमाचल सुनटनर्तक से अति प्रसन्न हो गए और उन्हें भिक्षा मांगने के लिए कहां । सुनटनर्तक राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती को भिक्षा में मांगा । राजा हिमाचल को क्रोध आ गया और उन्होंने सुनटनर्तक को वहां से निकाल दिया । कुछ समय पश्चात राजा हिमाचल को दिव्यज्ञान हुआ और वे भगवान शिव को अपनी पुत्री देने के लिए मान गए।
यक्ष अवतार : देवता और दानव समुद्र मंथन कर रहे थे तब उन्हे समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ । अमृत का पान करने के बाद देवताओं को सबसे शक्तिशाली और अमर होने का गर्व हुआ तब भगवान शिव यक्ष का रूप लेकर देवतों के सामने गए । उन्होंने एक तिनका देवताओं के सामने रखा और इस तिनके को काटने को कहां कोई भी देवता तिनके को काट न सका।
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