धान भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलों मे से एक है। खरीफ सीजन में धान के बीज की बुवाई 15 मई से 15 जुलाई तक कर सकते हैं। देश के कई राज्यों में किसान पानी की कमी के चलते धान की खेती देर से करते हैं। धान की सीधी बिजाई के लिए टॉप किस्मों की जानकारी दे रहे हैं, इनमें से कुछ किस्में ऐसी है जो कम समय में ज्यादा उत्पादन से किसानों की भारी मुनाफा कमाकर देती है। धान की इन किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट – आईएआरआई) द्वारा विकसित किया गया है।
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इस साल आईआरआई के दीक्षान्त समारोह में बताया गया कि बासमती धान की किस्मों की खेती खूब की जा रही है। बासमती धान से साल 2023-24 के दौरान 40,000 करोड़ रुपये अर्जित किए गए हैं। बासमती धान की कुछ किस्मों में अधिक रोग लगने के कारण ज्यादा कीटनाशक छिड़काव करना पड़ता है। भारतीय किसानों के सामने कीटनाशकों की चुनौती से निपटने की बड़ी समस्या आ गई है। पेस्टिसाइड न डालें तो धान की खेती रोगों से खराब होती है। इन रोगों की समस्या से निपटने के लिए आईआरआई पूसा ने बासमती की सात नई प्रजातिया विकसित की हैं, इसमें मुख्य रूप से जीवाणु झुलसा रोग, वैक्टिरियल ब्लाइट और झोका रोग, ब्लास्ट के प्रति इन किस्मों में रोगरोधी क्षमता को विकसित किया गया है।
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रोगमुक्त बासमती की सात किस्में:
- पूसा बासमती 1847 किस्म: आईआरआई पूसा के अनुसार इसमें पूसा बासमती 1847, लोकप्रिय बासमती धान को 1509 को सुधार करके बनाई गई थी। इस किस्म में बैक्टीरियल ब्लाइट से की क्षमता होती है जो 120-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 22-23 क्विंटल प्रति एकड़ है।
- बासमती 1885 किस्म: पूसा बासमती धान की यह किस्म लोकप्रिय है। इस किस्म में भी ब्रीडीग के माध्यम से बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट रोग से लड़ने की क्षमता है। इस किस्म के चावल लंबे पतले और स्वादिष्ट गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है साथ ही इसकी औसत उपज प्रति एकड़ 18.72 क्विंटल है।
- पूसा बासमती 1886 किस्म: पूसा बासमती 1886 बासमती चावल की किस्म है, पूसा बासमती 6 को सुधार कर बनाया गया है। इसमें बैक्टीरियल ब्लाइट औक झोका ब्लास्ट रोग प्रतिरोध के लिए दो जीन हैं जो ब्रीडिंग के माध्यम से विकसित किए गए हैं। यह किस्म 145 दिनों में तैयार हो जाती है और औसत उपज 18 क्विंटल प्रति एकड़ है।
- पूसा बासमती 1692: धान की पूसा बासमती 1692 किस्म 115 से 120 दिन में फसल तैयार हो जाती है जो कम पानी में बेहतर पैदावार देती है। इस किस्म औसत उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ है। एक एकड़ में रोपाई के लिए 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है और न ही इसके दाने टूटते हैं।
- पूसा बासमती 1121 (PB 1121): धान की पूसा बासमती 1121 की इस किस्म का निर्यात सबसे ज्यादा किया जाता है। चावल की यह किस्म अपनी खुशबू, स्वाद और सबसे लंबे दाने के लिए जाना जाता है। चावल की लंबाई 9-10 एमएम तक होती है। किसान इसकी बुवाई 20 मई से 15 जून तक कर सकते हैं। इस किस्म की औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ है।
- पूसा बासमती 1718 (PB 1718): पूसा बासमती 1718 (PB 1718) रोगमुक्त धान की उन्नत किस्म है। इस किस्म में कम पानी की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई का सही समय 15 मई से 20 जून तक कर सकते हैं। यह प्रजाति 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 20 से 25 क्विंटल पैदावार मिलती है।
- पूसा बासमती 1401 (PB 1401): यह बासमती धान की अर्द्धबौनी किस्म है। इसकी फसल 135 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। उपज क्षमता 4 से 5 टन प्रति हेक्टेयर है। दानों की समानता व पकाने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत ही श्रेष्ठ है।
बाढ़ प्रतिरोधी धान की स्वर्णा सब 1 किस्म:
भारत में धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है। कई राज्यों में किसान धान की खेती पर ही निर्भर रहते हैं। ऐसे में किसानों को उनके क्षेत्र की जलवायु के अनुसार धान की उन्नत किस्मों का चयन करना जरुरी है। जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा, बाढ़ या जल जमाव की स्थिति रहती है वहाँ किसान बाढ़ प्रतिरोधी किस्म स्वर्णा सब-1 किस्म का चयन कर सकते हैं। धान की स्वर्णा सब 1 किस्म के पौधे 12 से 14 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी खराब नहीं होते हैं।
स्वर्णा सब 1 धान किस्म की खासियत:
धान की इस किस्म की लंबाई लगभग 105 से 110 सेमी तक होती है। इस किस्म सीधी बुआई करने पर 140 दिनों में एवं रोपाई करने पर 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका दाना मध्यम पतला तथा धान की यह किस्म 4.5 से 5.5 टन प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार देती है। सीधी बुआई के लिए जून महीने का प्रथम पखवाड़ा सबसे उपयुक्त समय है वहीं रोपाई हेतु पौध तैयार करने के लिए क्यारी में जून के पहले सप्ताह में बुआई करना अच्छा रहता है। वहीं बात की जाये बुआई के लिए बीज दर की तो किसान सीधी बुआई के लिए 60 से 70 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर एवं रोपाई के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लेना पर्याप्त रहता है।
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