सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत पुलिस को जांच का निर्देश देकर किसी अपराध का संज्ञान लेने के लिए नहीं कहा जा सकता।
हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने देवरापल्ली लक्ष्मीनारायण रेड्डी और अन्य बनाम वी. नारायण रेड्डी और अन्य (1976) 3 एससीसी 252 के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि जब मजिस्ट्रेट अभ्यास में था अपने न्यायिक विवेक से सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच का निर्देश देता है। इस बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी अपराध का संज्ञान लिया है। ऐसा तभी होता है, जब मजिस्ट्रेट अपना विवेक लगाने के बाद सीआरपीसी के अध्याय XV के तहत प्रक्रिया का पालन करना पसंद करता है। धारा 200 का सहारा लेकर यह कहा जा सकता है कि उसने अपराध का संज्ञान ले लिया है।
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अदालत ने देवरापल्ली लक्ष्मीनारायण रेड्डी में कहा,
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“मोटे तौर पर, जब शिकायत प्राप्त होने पर मजिस्ट्रेट धारा 200 और 1973 की संहिता के अध्याय XV में आने वाली धाराओं के तहत आगे बढ़ने के प्रयोजनों के लिए अपना विवेक लगाता है तो कहा जाता है कि उसने धारा 190(1)(ए) के तहत अपराध का संज्ञान ले लिया है। यदि अध्याय XV के तहत आगे बढ़ने के बजाय उसने अपने विवेक के न्यायिक प्रयोग में किसी अन्य प्रकार की कार्रवाई की है, जैसे कि जांच के उद्देश्य से तलाशी वारंट जारी करना, या धारा 156(3) के तहत पुलिस द्वारा जांच का आदेश देना तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसने किसी अपराध का संज्ञान लिया है।”
वर्तमान मामले में मजिस्ट्रेट ने शिकायत और उसके समर्थन में दस्तावेजों, साथ ही शिकायतकर्ता द्वारा की गई दलीलों का अध्ययन किया और प्रथम दृष्टया संतुष्ट होने के बाद सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच का निर्देश देते हुए अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग किया था।
मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष धारा 482 सीआरपीसी याचिका प्रस्तुत की। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और पुलिस जांच का निर्देश देने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट को मौजूदा मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था।
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अदालत ने कहा,
“ऐसा आदेश (मजिस्ट्रेट का आदेश) उचित, कानूनी और उचित होने के कारण हाईकोर्ट को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था, विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत सीमित शक्तियों का प्रयोग करते हुए।”
तदनुसार, अदालत ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार कर ली और पुलिस जांच का निर्देश देने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को बहाल कर दिया।
केस टाइटल: मैसर्स एसएएस इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य।
Nguồn: https://nanocms.in
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